सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग एक)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन "परमेश्वर का कार्य एवं मनुष्य का रीति व्यवहार" (भाग एक)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक उदाहरण में ऐसे दर्शन हैं जिन्हें मनुष्य के द्वारा पहचाना जाना चाहिए, ऐसे दर्शन जिनका अनुसरण मनुष्य के प्रति परमेश्वर की उचित अपेक्षाओं के द्वारा किया जाता है। बुनियाद के रूप में इन दर्शनों के बिना, मनुष्य साधारण तौर पर रीति व्यवहार में असमर्थ होगा, और न ही मनुष्य बिना लड़खड़ाए परमेश्वर का अनुसरण करने के योग्य होगा। यदि मनुष्य परमेश्वर को नहीं जानता या परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझता, तो वह सब कुछ जो मनुष्य करता है वह व्यर्थ है, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाने के योग्य नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य के वरदान कितने अधिक हैं, क्योंकि वह अभी भी परमेश्वर के कार्य तथा परमेश्वर के मार्गदर्शन से अविभाज्य है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मनुष्य के कार्य कितने अच्छे या अनेक हैं, क्योंकि वे तब भी परमेश्वर के कार्य का स्थान नहीं ले सकते हैं। और इस प्रकार, किसी भी परिस्थिति के अंतर्गत मनुष्य का रीति व्यवहार दर्शनों से विभाज्य नहीं है। जो नए दर्शनों को स्वीकार नहीं करते हैं उनके पास कोई नया रीति व्यवहार नहीं होता है। उनके रीति व्यवहार का सत्य के साथ कोई रिश्ता नहीं है क्योंकि वे सिद्धान्त में बने रहते हैं और मृत व्यवस्था का पालन करते हैं; उनके पास बिलकुल भी नए दर्शन नहीं हैं, और परिणामस्वरूप, वे नए युग में अभ्यास में लाने के लिए कुछ नहीं करते हैं। उन्होंने दर्शनों को खो दिया है, और ऐसा करने से उन्होंने पवित्र आत्मा के कार्य को भी गंवा दिया है, और सत्य को खो दिया है।"

आपके लिए अनुशंसित:परमेश्वर का वचन यहाँ है - जीवन और आध्यात्मिक आपूर्ति

0コメント

  • 1000 / 1000