परमेश्वर के कथन "भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है" (भाग दो)
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मनुष्य को शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, और वह परमेश्वर के सभी जीवधारियों में सबसे ऊपर है, अतः मनुष्य को परमेश्वर के उद्धार की आवश्यकता है। परमेश्वर के उद्धार का विषय मनुष्य है, न कि शैतान, और जिसे बचाया जाना चाहिए वह मनुष्य की देह है, एवं मनुष्य का प्राण है, और शैतान नहीं है। शैतान परमेश्वर के सम्पूर्ण विनाश का विषय है, मनुष्य परमेश्वर के उद्धार का विषय है, और मनुष्य के शरीर को शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, अतः जिसे पहले बचाना है वह मनुष्य का शरीर ही होगा। मनुष्य की देह को बहुत ज़्यादा भ्रष्ट किया जा चुका है, और यह कुछ ऐसा बन गया है जो परमेश्वर का विरोध करता है, जो यहाँ तक कि खुले तौर पर परमेश्वर का विरोध करता है और उसके अस्तित्व को भी नकारता है। इस भ्रष्ट देह का उपचार करना बहुत ही मुश्किल है, और देह के भ्रष्ट स्वभाव की अपेक्षा किसी और चीज़ के साथ निपटना या उसे बदलना ज़्यादा कठिन नहीं है। शैतान परेशानियां खड़ी करने के लिए मनुष्य की देह के भीतर आता है, और परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालने के लिए मनुष्य की देह का उपयोग करता है, और परमेश्वर की योजना को बाधित करता है, और इस प्रकार मनुष्य शैतान, एवं परमेश्वर का शत्रु बन चुका है। मनुष्य को बचाने के लिए, पहले उस पर विजय पाना होगा। यही कारण है कि परमेश्वर चुनौती के लिए उठता है, और देह में होकर आता है कि वह कार्य करे जिसे उसने करने का इरादा किया है, और शैतान के साथ लड़े। उसका उद्देश्य मनुष्य का उद्धार है, जिसे भ्रष्ट किया जा चुका है, और शैतान की पराजय एवं उसका सम्पूर्ण विनाश है, जो उसके विरुद्ध विद्रोह करता है। वह मनुष्य पर विजय पाने के अपने कार्य के जरिए शैतान को पराजित करता है, और ठीक उसी समय भ्रष्ट मानवजाति का उद्धार करता है। इस प्रकार, परमेश्वर एक बार में ही दो समस्याओं का हल करता है।"
पापी स्वभाव से किस प्रकार मुक्त हो सकते है, इसका जवाब "वचन देह में प्रकट होता है" की पुस्तक में है
परमेश्वर के वचनों के पठन - परमेश्वर के नवीनतम कथन
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