परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" (अंश 16)

परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" (अंश 16)

"प्रभु यीशु ने लगातार पतरस से एक बात पूछीः ""हे पतरस, क्या तू मुझ से प्रेम करता है?"" यह वह ऊँचा स्तर है जिसकी माँग प्रभु यीशु अपने पुनरूत्थान के बाद पतरस के समान ही लोगों से करता है, जो सचमुच में मसीह पर विश्वास करते हैं और प्रभु से प्रेम करने के लिए संघर्ष करते हैं। यह प्रश्न एक प्रकार की खोजबीन थी, एक प्रकार की पूछताछ थी, परन्तु इसके अतिरिक्त, यह पतरस के समान लोगों से की गई माँग और अपेक्षा थी। उसने प्रश्न पूछने के इस तरीके का प्रयोग किया ताकि लोग स्वयं पर विचार करें और स्वयं के भीतर झाँकें: लोगों से प्रभु यीशु की अपेक्षाएँ क्या हैं? क्या मैं प्रभु से प्रेम करता हूँ? क्या मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो प्रभु से प्रेम करता है? मुझे किस प्रकार प्रभु से प्रेम करना चाहिए? भले ही प्रभु यीशु ने यह प्रश्न केवल पतरस से पूछा था, परन्तु सच्चाई यह है कि अपने हृदय में, वह इस अवसर का लाभ उठाना चाहता था ताकि पतरस से कह सके कि वह अधिक से अधिक लोगों से इस प्रकार का प्रश्न पूछे जो परमेश्वर से प्रेम करने की खोज में थे। यह सिर्फ पतरस ही है जो इस प्रकार के व्यक्ति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने, और स्वयं प्रभु यीशु के मुँह से प्रश्न को प्राप्त करने के लिए आशीषित था।

तुलना कीजिए, ""अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो,"" जिसे प्रभु यीशु ने अपने पुनरूत्थान के बाद थोमा से कहा था, उसने पतरस से तीन बार प्रश्न पूछा थाः ""हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?"" इसने लोगों को अनुमति दी कि वे प्रभु यीशु की प्रवृत्ति की कड़ाई, और उस तीव्र इच्छा का भलीभांति एहसास करें जो उसने प्रश्न पूछने के समय महसूस किया था। जहाँ तक सन्देह करने वाले थोमा और उसके मक्कार और धोखेबाज स्वभाव की बात है, प्रभु यीशु ने उसे अनुमति दी कि वह अपना हाथ बढ़ाए और उसके कीलों के निशान को छूए, जिसने उसे विश्वास दिलाया कि प्रभु यीशु ही पुनरूत्थित मनुष्य का पुत्र है और उसने मसीह के रूप में प्रभु यीशु की पहचान को स्वीकार किया। और यद्यपि प्रभु यीशु ने थोमा को सख्ती से नहीं डाँटा था, ना ही उसने मौखिक रूप से उस पर साफ साफ दण्ड की आज्ञा दी थी, परन्तु जब वह उस प्रकार के व्यक्ति के प्रति अपनी मनोवृत्ति और दृढ़ता को प्रदर्शित कर रहा था, तो उसने जाहिर किया कि वह उसे व्यावहारिक कार्यों के द्वारा समझ चुका था। इस प्रकार के व्यक्ति से प्रभु यीशु की माँगों और अपेक्षाओं को जो कुछ उसने कहा था उसके आधार पर देखा नहीं जा सकता है। क्योंकि थोमा जैसे लोगों के पास सामान्यतः सच्चे विश्वास की डोर नहीं होती है। उनके लिए प्रभु यीशु की माँगें बस यही थीं, लेकिन वह मनोवृत्तियाँ जो उसने पतरस जैसे लोगों के लिए प्रकट किया था वह बिल्कुल भिन्न था। उसने यह माँग नहीं की थी कि पतरस अपना हाथ बढ़ाए और उसके कीलों के निशानों को छुए, ना ही उसने पतरस से कहाः ""अविश्वासी नहीं परन्तु, विश्वासी हो।"" उसके बजाए, उसने लगातार उससे वही प्रश्न पूछा। यह विचारों को उकसाने वाला, एवं अर्थपूर्ण प्रश्न था जो कोई मदद नहीं कर सकता था किन्तु मसीह के प्रत्येक अनुयायी को दुखी, और भयभीत करता है, लेकिन साथ ही प्रभु यीशु की चिन्ता, एवं दुखित स्वभाव का भी एहसास कराता है। और जब वे बड़े दर्द और कष्ट में होते हैं, तब वे प्रभु यीशु की चिन्ता और उसकी देखरेख को और अधिक अच्छे से समझ पाते है; वे शुद्ध, और ईमानदार लोगों के लिए उसकी सच्ची शिक्षाओं और कठिन माँगों को समझते हैं। प्रभु यीशु का प्रश्न लोगों को यह एहसास कराता है कि लोगों से प्रभु की माँगें इन सामान्य वचनों में प्रकट हैं जो मात्र उनमें विश्वास करने और उसका अनुसरण करने के लिए नहीं हैं, लेकिन प्रेम को पाने, अपने प्रभु से प्रेम करने, और अपने परमेश्वर से प्रेम करने के लिए है। इस प्रकार का प्रेम देखरेख करने वाला और आज्ञाकारी है। यह मनुष्यों के लिए परमेश्वर के लिए जीना, परमेश्वर के लिए मरना, परमेश्वर को सब कुछ समर्पित करना है, और परमेश्वर के लिए सब कुछ को खर्च करना एवं उसके लिए सब कुछ दे देना है। इस प्रकार का प्रेम परमेश्वर को सुख देना, गवाही पर उसे आनंदित होने देना, और उसे विश्राम से रहने देना भी है। उनका उत्तरदायित्व, आभार और कर्त्तव्य है जो मानव जाति की तरफ से परमेश्वर को किया गया पुनःभुगतान है, और यह एक मार्ग है जिसका अनुसरण मानवजाति को जीवन भर करना चाहिए। ये तीनों प्रश्न एक माँग और प्रोत्साहन थे जिन्हें प्रभु यीशु ने पतरस और उन सभी लोगों से किया था जिन्हें सिद्ध बनाया जाएगा। ये वो तीन प्रश्न थे जिन्होंने पतरस को जीवन में अपने मार्ग को पूर्ण करने के लिए अगुवाई और प्रेरणा दी, और प्रभु यीशु के जाने के बाद भी ये वे प्रश्न थे जिन्होंने सिद्ध बनने की उसकी यात्रा को शुरू करने में पतरस की अगुवाई की, जिन्होंने प्रभु के प्रति उसके प्रेम के कारण उसकी अगुवाई की कि वे प्रभु के हृदय का ख़्याल रखें, प्रभु की आज्ञाओं का पालन करें, प्रभु को सुख दें, और इस प्रेम के कारण अपने सम्पूर्ण जीवन और अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को भेंट चढ़ा दें।

— ""परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III"" से उद्धृत"


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