परमेश्वर के दैनिक वचन "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II" (अंश 2)
"सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, ""गुनाह के प्रति परमेश्वर की असहिष्णुता उसकी विशिष्ट हस्ती है; परमेश्वर का क्रोध उसका विशिष्ट स्वभाव है; परमेश्वर का प्रताप उसकी विशिष्ट हस्ती है। परमेश्वर के क्रोध के पीछे का सिद्धान्त उस पहचान और हैसियत को दर्शाता जिसे सिर्फ उसने धारण किया है। किसी को जिक्र करने की आवश्यकता नहीं है कि यह स्वयं अद्वितीय परमेश्वर की हस्ती का एक प्रतीक भी है। परमेश्वर का स्वभाव उसकी स्वयं की अंतर्निहित हस्ती है। यह समय के गुज़रने के साथ बिलकुल भी नहीं बदलता है, और जब कभी स्थान परिवर्तित होता है तब भी यह नहीं बदलता है। उसका अंतर्निहित स्वभाव उसकी स्वाभाविक हस्ती है। इसके बावजूद कि वह किसी पर अपने कार्य को क्रियान्वित करता है, क्योंकि उसकी हस्ती नहीं बदलती है, न ही उसका धर्मी स्वभाव बदलता है। जब कोई उसे क्रोधित करता है, तो जिसे वह आगे भेजता है वह उसका अंतर्निहित स्वभाव है; इस समय उसके क्रोध के पीछे का सिद्धान्त नहीं बदलता है, और न ही उसकी अद्वितीय पहचान और हैसियत बदलती है। अपनी हस्ती में परिवर्तन के कारण या उसके स्वभाव ने अलग अलग तत्वों को उत्पन्न किया है इस कारण वह क्रोधित नहीं होता है, किन्तु इसलिए क्योंकि उसके विरुद्ध मनुष्य का विरोध उसके स्वभाव को ठेस पहुंचाता है। मनुष्य का परमेश्वर को बुरी तरह से उकसाना परमेश्वर की अपनी पहचान और हैसियत के लिए एक गम्भीर चुनौती है। परमेश्वर की नज़र में, जब मनुष्य उसे चुनौती देता है, तब मनुष्य उससे मुकाबला कर रहा है और उसके क्रोध की परीक्षा ले रहा है। जब मुनष्य परमेश्वर का विरोध करता है, जब मनुष्य परमेश्वर से मुकाबला करता है, जब मनुष्य लगातार उसके क्रोध की परीक्षा लेता है—तब भी जब उसका पाप अनियंत्रित हो जाता है—तब परमेश्वर का क्रोध स्वाभाविक रूप से अपने आपको प्रकट एवं प्रस्तुत करेगा। इसलिए, परमेश्वर के क्रोध का प्रकटीकरण संकेत करता है कि समस्त बुरी ताकतें अस्तित्व में नहीं रहेंगी; यह संकेत करता है कि सभी उपद्रवी शक्तियों को नष्ट किया जाएगा। यह परमेश्वर के धर्मी स्वभाव की अद्वितीयता है, और यह परमेश्वर के क्रोध की अद्वितीयता है। जब परमेश्वर की गरिमा और पवित्रता को चुनौती दी जाती है, जब मनुष्य के द्वारा धर्मी ताकतों को रोका जाता है और इसकी अनदेखी की जाती है, तब परमेश्वर अपने क्रोध को भेजेगा। परमेश्वर की हस्ती के कारण, पृथ्वी की वे सारी ताकतें जो परमेश्वर का मुकाबला करती हैं, उसका विरोध करती हैं और उसके साथ संघर्ष करती हैं वे बुरी, भ्रष्ट और अधर्मी हैं; वे शैतान की ओर से आती हैं और उसी की हैं। क्योंकि परमेश्वर धर्मी है, और उस प्रकाश और दोषरहित पवित्रता के कारण, समस्त चीज़ें जो बुरी, भ्रष्ट और शैतान से सम्बन्धित हैं वे परमेश्वर के क्रोध के प्रकट होने के साथ ही विलुप्त हो जाएंगी।
यद्यपि परमेश्वर के क्रोध का उंडेला जाना उसके धर्मी स्वभाव के प्रदर्शन का एक पहलू है, फिर भी परमेश्वर का क्रोध अपने लक्ष्य के प्रति विवेकशून्य या सिद्धान्तविहीन बिलकुल भी नहीं है। इसके विपरीत, परमेश्वर क्रोध करने में बिलकुल भी उतावला नहीं है, न ही वह अपने क्रोध और प्रताप को जल्दबाजी में प्रकट करता है। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर का क्रोध विशेष रूप से नियन्त्रित और नपा-तुला होता है; इसकी तुलना इस बात से बिलकुल भी नहीं की जा सकती है कि मनुष्य किस प्रकार अपने क्रोध से आग बबूला होगा या अपने क्रोध को प्रकट करेगा। परमेश्वर और मनुष्य के बीच हुई अनेक बातचीत बाइबल में दर्ज हैं। इन में से कुछ लोगों के कथन सतही, अज्ञानी और बचकाने थे, किन्तु परमेश्वर ने उन्हें मारकर नीचे नहीं गिराया, और न ही उनकी भर्त्सना की। विशेष रूप से, अय्यूब की परीक्षा के दौरान, यहोवा परमेश्वर ने अय्यूब के तीन मित्रों और दूसरों से कैसा बर्ताव किया था उन शब्दों को सुनने के पश्चात् जो उन्होंने अय्यूब से कहा था? क्या उसने उन्हें दोषी ठहराया था? क्या वह उन पर आग बबूला हो गया था? उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था! उसके बजाए उसने अय्यूब को उनके लिए विनती करने, और उनके लिए प्रार्थना करने के लिए कहा; दूसरी और परमेश्वर ने उनकी ग़लतियों को मन में नहीं रखा। ये सभी उदाहरण उस मुख्य मनोवृत्ति को दर्शाते हैं जिसके तहत परमेश्वर भ्रष्ट एवं अबोध मानवता से बर्ताव करता है। इसलिए, परमेश्वर के क्रोध का जारी होना उसके मिजाज़ का प्रदर्शन या प्रकट होना बिलकुल भी नहीं है। परमेश्वर का क्रोध गुस्से का बहुत बड़ा विस्फोट नहीं है जैसा मनुष्य इसे समझता है। परमेश्वर अपने क्रोध को इसलिए प्रकट नहीं करता है क्योंकि वह अपने मिजाज़ पर काबू करने में समर्थ नहीं है या क्योंकि उसका क्रोध उबलने के बिन्दु पर आ पहुंचा है और उसे बहार निकालना ही होगा। इसके विपरीत, उसका क्रोध उसके धर्मी स्वभाव का एक प्रदर्शन है और उसके धर्मी स्वभाव का एक विशुद्ध प्रकटीकरण है; यह उसकी पवित्र हस्ती का एक सांकेतिक प्रकाशन है। परमेश्वर क्रोध है, और किसी भी गुनाह के प्रति सहनशील नहीं है—कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि परमेश्वर का क्रोध विभिन्न कारणों के बीच अन्तर नहीं करता है या यह सिद्धान्तविहीन है; यह भ्रष्ट मानवता है जिसके पास सिद्धान्तविहीनता, और बिना सोचे समझे क्रोध के भड़कने पर एक व्यापक एकाधिकार है जो विभिन्न कारणों के बीच अन्तर नहीं करता है। जब एक बार किसी व्यक्ति के पास हैसियत आ जाती है, तो उसे अकसर अपने मिजाज़ पर नियन्त्रण पाने में कठिनाई होगी, और इस प्रकार वह अपने असंतोष को अभिव्यक्त करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए घटनाओं का इस्तेमाल करने में आनन्द करेगा; वह अक्सर बिना किसी स्पष्ट कारण के क्रोध से आगबबूला होगा, जिससे अपनी योग्यता को प्रकट कर सके और दूसरे जान सकें कि उसकी हैसियत और पहचान अन्य सामान्य लोगों से अलग है। हाँ वास्तव में, भ्रष्ट लोग बिना किसी हैसियत के भी बार बार नियन्त्रण खो देते हैं। उनके व्यक्तिगत हितों के नुकसान के द्वारा उनका क्रोध बार बार प्रकट होता है। अपनी स्वयं की हैसियत और गरिमा की सुरक्षा करने के लिए, भ्रष्ट मानवजाति बार बार अपनी भावनाओं को व्यक्त करेगी और अपने अहंकारी स्वभाव को प्रकट करेगी। पाप के अस्तित्व का समर्थन करने के लिए मनुष्य क्रोध में आगबबूला होगा और अपनी भावनाओं को व्यक्त करेगा, और ये कार्य वे तरीके हैं जिसके तहत मनुष्य अपने असंतोष प्रकट करता है। ये कार्य अशुद्धता से लबालब भरे हुए हैं; वे छल कपट और साजिशों से लबालब भरे हुए हैं; वे मनुष्य की भ्रष्टता और बुराई से लबालब भरे हुए हैं; उससे कहीं बढ़कर, वे मनुष्य की निरंकुश महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से लबालब भरे हुए हैं। जब न्याय दुष्टता से मुकाबला करता है, तो मनुष्य न्याय के अस्तित्व का समर्थन करने के लिए क्रोध से आगबबूला नहीं होता है; उसके विपरीत, जब न्याय की शक्तियों को धमकाया, सताया और उन पर आक्रमण किया जाता है, तब मनुष्य का स्वभाव एक प्रकार से नज़रअंदाज़ करने, टालने या मुंह फेरने का होता है। फिर भी, दुष्ट की शक्तियों से मुकाबला करते समय, मनुष्य की मनोवृत्ति एक प्रकार से भोजन का प्रबन्ध करने, और नमस्कार करने, और रगड़ कर साफ करने की होती है। इसलिए, मनुष्य का बक बक करना दुष्ट की शक्तियों के लिए बच निकलने का मार्ग है, और शारीरिक मनुष्य के अनियंत्रण का एक प्रदर्शन है और रोका न जा सकनेवाले बुरा आचरण है। फिर भी, जब परमेश्वर अपने क्रोध को भेजता है, तब सारी बुरी शक्तियों को रोका जाएगा; मनुष्य को हानि पहुंचाने वाले सारे पापों को रोका जाएगा; वे सभी बैरी शक्तियां जो परमेश्वर के कार्य में बाधा डालती हैं उन्हें प्रकट, अलग और शापित किया जाएगा; शैतान के सभी सह अपराधियों को जो परमेश्वर का विरोध करते हैं उन्हें दण्डित किया जाएगा, और जड़ से उखाड़ दिया जाएगा। उनके स्थान में, परमेश्वर का कार्य रुकावटों से मुक्त होकर आगे बढ़ेगा; परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना निर्धारित समय के अनुसार लगातार कदम दर कदम विकसित होगी; परमेश्वर के चुने हुए लोग शैतान की परेशानी और धूर्तता से मुक्त होंगे; ऐसे लोग जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं वे खामोश और शांतिप्रिय माहौल के बीच परमेश्वर की अगुवाई और आपूर्ति का आनन्द लेंगे। परमेश्वर का क्रोध एक सुरक्षा कवच है जो दुष्ट की सारी शक्तियों को बहुगुणित होने और अनियंत्रित होकर बढ़ने से रोकता है, और यह एक ऐसा सुरक्षा कवच भी है जो समस्त धर्मी और सकारात्मक चीज़ों के अस्तित्व और फैलाव को सुरक्षा प्रदान करता है और दमन और विनाश से सदा उनकी हिफाज़त करता है।""
— ""स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II"" से उद्धृत"
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