परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II" (अंश 12)
"परमेश्वर की परीक्षाओं को स्वीकार करना, शैतान की परीक्षाओं पर विजय प्राप्त करना, और परमेश्वर को अनुमति देना कि वह तेरे सम्पूर्ण अस्तित्व को हासिल करे
मनुष्य के लिए अपने स्थायी प्रावधान एवं आपूर्ति के कार्य के दौरान, परमेश्वर मनुष्य को अपनी सम्पूर्ण इच्छा एवं अपेक्षाओं को बताता है, और अपने कार्य, स्वभाव, एवं जो उसके पास है एवं जो वह है उन्हें मनुष्य को दिखता है। उद्देश्य यह है कि मनुष्य के डीलडौल को सुसज्जित किया जाए, और मनुष्य को अनुमति दिया जाए कि वह उसका अनुसरण करते हुए परमेश्वर से विभिन्न सच्चाईयों को हासिल करे—ऐसी सच्चाईयां जो हथियार हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को दिया गया है जिससे वह शैतान से लड़े। इस प्रकार से सुसज्जित होकर, मनुष्य को परमेश्वर की परीक्षाओं का सामना करना होगा। परमेश्वर के पास मनुष्य को परखने के लिए कई माध्यम एवं बढ़िया मार्ग हैं, परन्तु उनमें से प्रत्येक को परमेश्वर के शत्रु अर्थात् शैतान के ""सहयोग"" की आवश्यकता है। कहने का तात्पर्य है, मनुष्य को हथियार देने के बाद जिससे वह शैतान से युद्ध करे, परमेश्वर मनुष्य को शैतान को सौंप देता है और शैतान को अनुमति देता है कि वह मनुष्य के डीलडौल को ""परखे।"" यदि मनुष्य शैतान की युद्ध संरचना को तोड़कर आज़ाद हो सकता है, यदि वह शैतान की घेराबंदी से बचकर निकल सकता है और तब भी जीवित रह सकता है, तो मनुष्य ने उस परीक्षा को उत्तीर्ण कर लिया होगा होगा। परन्तु यदि मनुष्य शैतान की युद्ध संरचना को छोड़कर जाने में असफल हो जाता है, और शैतान के आधीन हो जाता है, तो उसने उस परीक्षण को उत्तीर्ण नहीं किया होगा। परमेश्वर मनुष्य के किसी भी पहलु की जांच कर ले, उसकी जांच का मापदंड है कि मनुष्य अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर रहता है या नहीं जब शैतान के द्वारा उस पर आक्रमण किया जाता है, और उसने परमेश्वर को छोड़ा है या नहीं और शैतान की घेराबंदी के समय शैतान के प्रति समर्पित एवं अधीन हुआ है या नहीं। ऐसा कहा जा सकता है कि मनुष्य को बचाया जा सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर होता है कि वह शैतान पर विजय प्राप्त करके उसे हरा सकता है या नहीं, और वह स्वतन्त्रता हासिल कर सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर होता है कि वह शैतान के बन्धनों पर विजय प्राप्त करने के लिए, एवं शैतान से आशा का त्याग करवाने एवं उसे अकेला छोड़ने के लिए मजबूर करने हेतु अपने स्वयं के हथियारों को उठा सकता है या नहीं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा उसे दिया गया था। यदि शैतान आशा को त्याग देता है और किसी को छोड़ देता है, तो इसका अर्थ है कि शैतान इस व्यक्ति को परमेश्वर से लेने के लिए फिर कभी कोशिश नहीं करेगा, वह इस व्यक्ति पर फिर कभी दोष नहीं लगाएगा और हस्तक्षेप नहीं करेगा, वह फिर कभी मनमर्जी तरीके से उसको प्रताड़ित नहीं करेगा या उस पर आक्रमण नहीं करेगा; केवल इस प्रकार के व्यक्ति को ही सचमुच में परमेश्वर के द्वारा हासिल किया जाएगा। यही वह सम्पूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर लोगों को हासिल करता है।
अय्यूब की गवाही के द्वारा आनेवाली पीढ़ियों को चेतावनी एवं अद्भुत प्रकाशन प्रदान करना
ठीक उसी समय उस प्रक्रिया को समझते हुए जिसके द्वारा परमेश्वर किसी व्यक्ति को पूरी तरह से हासिल करता है, लोग परमेश्वर के द्वारा अय्यूब को शैतान को सौंपे जाने के लक्ष्यों एवं महत्व को भी समझेंगे। लोग अब आगे से अय्यूब की पीड़ा के द्वारा परेशान नहीं होते हैं, और उनके पास उसके महत्व की एक नई समझ है। वे अब आगे से इस विषय में चिंता नहीं करते हैं कि उन्हें अय्यूब के समान उसी परीक्षा के अधीन किया जाएगा या नहीं, और वे परमेश्वर की आनेवाली परीक्षणों का आगे से विरोध या उन्हें अस्वीकार नहीं करते हैं। अय्यूब का विश्वास, आज्ञाकारिता, और शैतान पर विजय पाने की उसकी गवाही लोगों के लिए बड़ी सहायता एवं प्रोत्साहन का एक बड़ा स्रोत है। वे अय्यूब में अपने स्वयं के उद्धार की आशा को देखते हैं, और यह देखते हैं कि विश्वास एवं परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता एवं भय के माध्यम से शैतान को हराना, और शैतान के ऊपर प्रबल होना पूरी तरह से सम्भव है। वे देखते हैं कि जब तक वे परमेश्वर की संप्रभुता एवं इंतज़ामों को चुपचाप स्वीकार करते हैं, और सब कुछ खोने के बाद भी परमेश्वर को न छोड़ने का दृढ़ संकल्प एवं विश्वास धारण करते हैं, तो वे शैतान को लज्जित और पराजित कर सकते हैं, और यह कि उन्हें अपनी गवाही में दृढ़ता से स्थिर खड़े रहने के लिए केवल दृढ़ संकल्प एवं धैर्य को धारण करने की आवश्यकता है—भले ही इसके लिए अपने प्राणों को खोना पड़े—जिससे शैतान को डराया जाए और वह एकदम से पीछे हट जाए। अय्यूब की गवाही आनेवाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी है, और यह चेतावनी उन्हें यह बताती है कि यदि वे शैतान को नहीं हराते हैं, तो वे कभी अपने आपको शैतान के आरोपों एवं हस्तक्षेप से छुड़ाने में समर्थ नहीं होंगे, न ही वे कभी शैतान के शोषण एवं आक्रमणों से बचकर निकलने के योग्य होंगे। अय्यूब की गवाही ने आनेवाली पीढ़ियों को अद्भुत रीति से प्रकाशित किया है। यह अद्भुत प्रकाशन लोगों को यह सिखाता है कि यदि वे सीधे एवं खरे हैं केवल तभी वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के योग्य हैं; यह उन्हें सिखाता है कि यदि वे परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं केवल तभी वे परमेश्वर के लिए एक मज़बूत एवं असाधारण गवाही दे सकते हैं; यदि वे परमेश्वर के लिए मज़बूत एवं असाधारण गवाही देते हैं केवल तभी उन्हें शैतान के द्वारा कभी नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है, और वे परमेश्वर के मार्गदर्शन एवं सुरक्षा के आधीन में जीवन बिताएंगे—और केवल तभी उन्हें सचमुच में बचाया लिया गया होगा। अय्यूब के व्यक्तित्व और उसके जीवन की खोज का हर किसी के द्वारा अनुकरण किया जाना चाहिए जो उद्धार की निरन्तर खोज करता है। जिसे उसने अपने सम्पूर्ण जीवन में और अपनी परीक्षाओं के दौरान अपने आचरण में जीया था वह उन सब के लिए एक अनमोल ख़ज़ाना है जो परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करते हैं।
— ""परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II"" से उद्धृत"
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