परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" (अंश 17)

परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III" ( अंश 17)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "प्रभु यीशु के पुनरूत्थित होने के बाद, वह उन लोगों के सामने प्रकट हुआ जिन्हें वह जरूरी समझता था, और उनसे बातें की, उनसे आकांक्षाएँ कीं, और लोगों के लिए अपनी इच्छाओं, और अपनी अपेक्षाओं को छोड़ कर चला गया। ऐसा कहना होगा, कि देहधारी परमेश्वर के रूप में, इससे फर्क नहीं पड़ता है कि यह उसके देह में रहने के समय के दौरान था, या क्रूस पर ठोके जाने और मुर्दों में से जी उठने के बाद अपनी आध्यात्मिक देह में रहने के समय था—मानव जाति के लिए उसकी चिन्ता और लोगों से उसकी आकांक्षाएँ नहीं बदली थीं। क्रूस के ऊपर चढ़ाए जाने से पहले वह इन चेलों को लेकर चिंतित था; वह अपने हृदय में प्रत्येक व्यक्ति की अवस्था को लेकर स्पष्ट था, उसने प्रत्येक व्यक्ति की कमी को समझा, और वास्तव में उसकी मृत्यु एवं पुनरूत्थान के बाद भी प्रत्येक मनुष्य के प्रति उसकी समझ वही थी, और जैसा पहले वह शरीर में था उसके समान वह एक आध्यात्मिक देह बन गया। वह जानता था कि लोग मसीह के रूप में उसकी पहचान को लेकर पूर्णत: निश्चित नहीं थे, परन्तु देह में रहने के दौरान उसने लोगों से कठोर अपेक्षाएँ नहीं कीं। परन्तु पुनरूत्थित हो जाने के बाद प्रभु यीशु उनके सामने प्रकट हुआ, और उसने उन्हें पूर्णत: निश्चित कराया कि प्रभु यीशु परमेश्वर से आया है, यह कि वह देहधारी परमेश्वर है, और उसने मानवजाति के द्वारा जीवन भर अनुसरण करने हेतु सबसे बड़े दर्शन और अभिप्रेरणा के रूप में अपने प्रकटन और अपने पुनरूत्थान के तथ्य का उपयोग किया। मृत्यु से उसके पुनरूत्थान ने ना केवल उन सभों को मज़बूत किया जिन्होंने उसका अनुसरण किया था, बल्कि अनुग्रह के युग के उसके कार्य को पूर्णत: मानव जाति के मध्य प्रभावशील कर दिया था, और इस तरह प्रभु यीशु के उद्धार का सुसमाचार अनुग्रह के युग में धीरे धीरे मानवता के हर छोर तक पहुँच गया। क्या तुम कहोगे कि पुनरूत्थान के बाद प्रभु यीशु के प्रकटीकरण का कोई महत्व था? उस समय यदि तुम थोमा या पतरस होते, और तुमने अपने जीवन में इस एक चीज़ का सामना किया होता जो इतना अर्थपूर्ण था, तो इसका तुम्हारे ऊपर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता? क्या तुम परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए इसे अपने जीवन के सबसे बेहतरीन और सबसे बड़े दर्शन के रूप में देखोगे? क्या तुम इसे परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए एक प्रेरक शक्ति के रूप में देखोगे, उसे सन्तुष्ट करने के लिए संघर्ष करोगे, और अपने जीवन में उसके प्रेम का अनुसरण करोगे? सभी दर्शनों में से सबसे बड़े दर्शन को फैलाने के लिए क्या तुम जीवन भर का प्रयास करोगे? क्या तुम प्रभु यीशु के उद्धार के सुसमाचार को फैलाने की आज्ञा को परमेश्वर से प्राप्त एक महान आदेश के रूप में लोगे? भले ही तुम लोगों ने इसका अनुभव नहीं किया है, फिर भी आधुनिक लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छा और परमेश्वर को स्पष्ट रीति से समझने के लिए थोमा और पतरस के दो मामले काफी हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर के देहधारी होने के बाद, उसके द्वारा मानव जाति के मध्य जीवन और एक मानवीय जीवन का व्यक्तिगत रीति से अनुभव करने के बाद, और उसके द्वारा मानव जाति की भ्रष्टता और मानवीय जीवन को देखने के बाद, देहधारी परमेश्वर ने मानव जाति की असहायता, उदासी, और दयनीयता का गहरा एहसास किया था। देह में रहते हुए अपनी मानवता के कारण, और देह में अपने अंतःज्ञान की वजह से परमेश्वर मनुष्यों की स्थिति के लिए और अधिक तरस से भर गया। इससे वह अपने अनुयायियों को लेकर और अधिक चिंतित हो गया। शायद ये ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें तुम लोग नहीं समझ सकते हो, परन्तु मैं इस वाक्यांश से उसके हर एक अनुयायी के लिए देहधारी परमेश्वर की चिंता और देखरेख का चित्रण कर सकता हूँ: गहन चिंता। भले ही यह शब्द मानवीय भाषा से आता है, और यद्यपि यह बिल्कुल मानवीय कहावत है, फिर भी यह अपने अनुयायियों के लिए परमेश्वर के एहसासों को सचमुच में प्रकट और चित्रित करता है। जहाँ तक मनुष्यों के लिए परमेश्वर की अत्यधिक चिन्ता की बात है, अपने अनुभवों के क्रम में तुम लोग धीरे-धीरे इसका एहसास करोगे और इसका स्वाद चखोगे। फिर भी, अपने स्वभाव में परिवर्तन का अनुसरण करके परमेश्वर के स्वभाव को धीरे-धीरे समझने के द्वारा इसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रभु यीशु की उपस्थिति ने मानवता में अपने अनुयायियों के लिए उसकी अत्यधिक चिन्ता को क्रियान्वित किया और उसे उसके आध्यात्मिक देह को सौंप दिया या तुम लोग यह कह सकते हो कि उसकी दिव्यता को सौंप दिया था। जब वह सामर्थ्यपूर्ण ढंग से यह प्रमाणित कर रहा था कि परमेश्वर ही वह एक है जो एक युग को आरम्भ करता है, उस युग को विकसित करता है, और वह ही एक है जो एक युग को समाप्त करता है तब उसकी उपस्थिति ने लोगों को परमेश्वर की चिन्ता और देखरेख को एक अलग प्रकार से अनुभव और एहसास करने की अनुमति दी। अपने प्रकटीकरण के द्वारा उसने लोगों के विश्वास को मज़बूत किया था, और अपनी उपस्थिति के द्वारा उसने संसार के सामने उस सच को साबित किया कि वह स्वयं परमेश्वर है। उसने अपने अनुयायियों को अनंत दृढ़ता प्रदान की, और साथ ही अपने प्रकटीकरण के जरिए उसने एक नए युग में अपने कार्य के एक दौर की शुरूआत की।"— "परमेश्वर को जानना परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है" से उद्धृत


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