परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I" (अंश 2)

परमेश्वर के दैनिक वचन "परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I" (अंश 2)

"सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, ""परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की, उसमें जीवन का श्वास फूंका, और उसे अपनी कुछ बुद्धि, अपनी योग्यताएँ, और अपना स्वरूप भी दिया। परमेश्वर ने मनुष्य को ये सब चीज़ें दीं उसके बाद, मनुष्य आत्मनिर्भरता से कुछ चीज़ों को करने और अपने आप सोचने के योग्य था। यदि मनुष्य जो सोचता है और जो करता है वह परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, तो परमेश्वर इसे स्वीकार करता है और हस्तक्षेप नहीं करता है। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह सही है, तो परमेश्वर उसे भलाई के लिए ऐसे ही होने देगा। अतः वह वाक्यांश ""और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया"" क्या सूचित करता है? यह दर्शाता है कि परमेश्वर ने विभिन्न जीवित प्राणियों के नामों में कोई भी सुधार नहीं किया था। आदम उनका जो भी नाम रखता, परमेश्वर कहता ""हाँ"" और उस नाम को वैसे ही दर्ज करता है। क्या परमेश्वर ने कोई राय व्यक्त की? नहीं, यह बिलकुल निश्चित है। तो तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? परमेश्वर ने मनुष्य को बुद्धि दी और मनुष्य ने कार्यों को अंजाम देने के लिए अपनी परमेश्वर-प्रदत्त बुद्धि का उपयोग किया। यदि जो कुछ मनुष्य करता है वह परमेश्वर की नज़रों में सकारात्मक है, तो इसे बिना किसी मूल्यांकन या आलोचना के परमेश्वर के द्वारा पुष्ट, मान्य, एवं स्वीकार किया जाता है। यह कुछ ऐसा है जिसे कोई व्यक्ति या दुष्ट आत्मा, या शैतान नहीं कर सकता है। क्या तुम लोग यहाँ परमेश्वर के स्वभाव के एक प्रकाशन को देखते हो? क्या एक मानव प्राणी, एक भ्रष्ट किए गए मानव प्राणी, या शैतान दूसरों को स्वीकार करेंगे कि उनकी नाक के नीचे कार्यों को अंजाम देने के लिए उनका प्रतिनिधित्व करें? बिलकुल भी नहीं! क्या वे पदवी के लिए उस अन्य व्यक्ति या अन्य शक्ति से लड़ाई करेंगे जो उनसे अलग है? हाँ वास्तव में वे करेंगे! उस घड़ी, यदि वह एक भ्रष्ट किया गया व्यक्ति या शैतान होता जो आदम के साथ था, तो जो कुछ आदम कर रहा था उन्होंने निश्चित रूप से उसे ठुकरा दिया होता। यह साबित करने के लिए कि उनके पास स्वतन्त्र रूप से सोचने की योग्यता है और उनके पास अपनी अनोखी अन्तःदृष्टियाँ हैं, तो जो कुछ भी आदम ने किया था उन्होंने पूरी तरह से उसे नकार दिया होता: क्या तुम इसे यह कहकर बुलाना चाहते हो? ठीक है, मैं इसे यह कहकर नहीं बुलानेवाला हूँ, मैं इसे वह कहकर बुलानेवाला हूँ; तुमने इसे टॉम कहा था लेकिन मैं इसे हैरी कहकर बुलानेवाला हूँ। मुझे अपनी प्रतिभा का दिखावा करना है। यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह अनियन्त्रित रूप से अहंकारी होना नहीं है? लेकिन क्या परमेश्वर के पास ऐसा स्वभाव है? यह कार्य जिसे आदम ने किया था क्या उसके प्रति परमेश्वर की कुछ असामान्य आपत्तियाँ थीं? स्पष्ट रूप से उत्तर है नहीं! उस स्वभाव के विषय में जिसे परमेश्वर प्रकाशित करता है, उसमें जरा सी भी तार्किकता, अहंकार, या आत्म-दंभ नहीं है। यहाँ यह बहुतायत से स्पष्ट है। यह तो बस एक छोटी सी बात है, लेकिन यदि तुम परमेश्वर के सार को नहीं समझते हो, यदि तुम्हारा हृदय यह पता लगाने की कोशिश नहीं करता है कि परमेश्वर कैसे कार्य करता है और उसकी मनोवृत्ति क्या है, तो तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं जानोगे या परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्तियों एवं प्रकाशन को नहीं देखोगे। क्या यह ऐसा नहीं है? क्या तुम उससे सहमत हो जिसे मैंने अभी अभी तुम्हें समझाया था? आदम के कार्यों के प्रत्युत्तर में, परमेश्वर ने जोर से घोषणा नहीं की, ""तुमने अच्छा किया। तुमने सही किया मैं सहमत हूँ""। फिर भी, जो कुछ आदम ने किया परमेश्वर ने अपने हृदय में उसकी स्वीकृति दी, उसकी सराहना, एवं तारीफ की थी। सृष्टि के समय से यह पहला कार्य था जिसे मनुष्य ने उसके निर्देशन पर परमेश्वर के लिए किया था। यह कुछ ऐसा था जिसे मनुष्य ने परमेश्वर के स्थान पर और परमेश्वर की ओर से किया था। परमेश्वर की नज़रों में, यह उस बुद्धिमत्ता से उदय हुआ था जिसे परमेश्वर ने मनुष्य को प्रदान किया था। परमेश्वर ने इसे एक अच्छी चीज़, एवं एक सकारात्मक चीज़ के रूप में देखा था। जो कुछ आदम ने उस समय किया था वह मनुष्य पर परमेश्वर की बुद्धिमत्ता का पहला प्रकटीकरण था। परमेश्वर के दृष्टिकोण से यह एक उत्तम प्रकटीकरण था। जो कुछ मैं यहाँ तुम लोगों को बताना चाहता हूँ वह यह है कि उसकी बुद्धिमत्ता और स्वरूप के एक अंश को मनुष्य से जोड़ने में परमेश्वर का यह लक्ष्य था ताकि मानवजाति ऐसा जीवित प्राणी बन सके जो उसको प्रदर्शित करे। एक ऐसे जीवित प्राणी के लिए उसकी ओर से ऐसे कार्यों को करना बिलकुल वैसा था जिसे देखने हेतु परमेश्वर लालसा कर रहा था।""

— ""परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I"" से उद्धृत"


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