केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है

जीवन का मार्ग यों ही कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता, न ही इसे हर इंसान आसानी से प्राप्त कर सकता है। ऐसा इसलिए है कि जीवन केवल परमेश्वर से ही आ सकता है, कहने का अर्थ है कि केवल स्वयं परमेश्वर ही जीवन के सार को धारण करता है, केवल स्वयं परमेश्वर के पास ही जीवन का मार्ग है। और इसलिए केवल परमेश्वर ही जीवन का स्रोत है, और जीवन के जल का सदा बहने वाला सोता है। जब से उसने संसार को रचा है, परमेश्वर ने जीवन की प्राणशक्ति से जुड़े बहुत से कार्य किये हैं, बहुत सारा कार्य मनुष्य को जीवन प्रदान करने के लिए किया है और बहुत अधिक मूल्य चुकाया है ताकि मनुष्य जीवन प्राप्त करे। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर स्वयं ही अनंत जीवन है, और वह स्वयं ही वह मार्ग है जिससे मनुष्य पुनर्जीवित होता है। परमेश्वर मनुष्य के हृदय में हमेशा मौजूद है और हर समय उनके मध्य में रहता है। वह मनुष्यों के जीवन यापन की प्रेरक शक्ति है, मनुष्य के अस्तित्व का आधार है, जन्म के बाद मनुष्य के अस्तित्व के लिए उर्वर संचय है। वह मनुष्य को नया जन्म लेने देता है, और प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने के लिये सक्षम बनाता है। उसकी सामर्थ्य और उसकी कभी न बुझने वाली जीवन की शक्ति के कारण, मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहता है, जिसके दौरान परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व के लिए मुख्य आधार रही है और जिसके लिए परमेश्वर ने ऐसी कीमत चुकाई है जैसी किसी साधारण मनुष्य ने कभी भी नहीं चुकाई। परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी शक्ति पर प्रभुत्व कर सकती है; इसके अलावा, वह किसी भी शक्ति से बढ़कर है। उसका जीवन शाश्वत है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसके जीवन की शक्ति आसानी से किसी भी सृजित प्राणी या शत्रु शक्ति से पराजित नहीं हो सकती। परमेश्वर की जीवन-शक्ति का अस्तित्व है, और चाहे कोई भी समय या स्थान क्यों न हो, वह अपने शानदार तेज से चमकती है। स्वर्ग और पृथ्वी बहुत बड़े बदलावों से गुज़र सकते हैं, लेकिन परमेश्वर का जीवन हमेशा समान ही रहता है। हर चीज़ का अस्तित्व समाप्त हो सकता है, परन्तु परमेश्वर का जीवन फिर भी अस्तित्व में रहेगा, क्योंकि परमेश्वर ही सभी चीजों के अस्तित्व का स्रोत है और उनके अस्तित्व का मूल है। मनुष्य का जीवन परमेश्वर से उत्पन्न होता है, स्वर्ग का अस्तित्व परमेश्वर के कारण है, और पृथ्वी का अस्तित्व भी परमेश्वर की जीवन शक्ति से ही उत्पन्न होता है। जीवन शक्ति युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के प्रभुत्व से श्रेष्ठ नहीं हो सकती, और प्रबलता से युक्त कोई भी वस्तु परमेश्वर के अधिकार के क्षेत्र से बचकर नहीं निकल सकती है। इस प्रकार से, चाहे वे कोई भी क्यों न हों, सभी को परमेश्वर के अधिकार के अधीन ही समर्पित होना होगा, प्रत्येक को परमेश्वर की आज्ञा के अधीन रहना होगा, और कोई भी उसके हाथों से बच कर नहीं जा सकता है।

हो सकता है कि अब तुम जीवन प्राप्त करना चाहते हो या हो सकता है कि सत्य प्राप्त करना चाहते हो। बात जो भी हो लेकिन तुम परमेश्वर को खोजना चाहते हो, ऐसे परमेश्वर को खोजना चाहते हो जिस पर कि तुम भरोसा कर सको, और जो तुमको अनंत जीवन प्रदान कर सके। यदि तुम अनंत जीवन को प्राप्त करने की इच्छा करते हो, तो तुम्हें सबसे पहले अनंत जीवन के स्रोत को समझने की आवश्यकता है, और यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर कहाँ है। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि केवल परमेश्वर अपरिवर्तनीय जीवन है, और केवल परमेश्वर ही जीवन का मार्ग धारण करता है। चूँकि उसका जीवन अपरिवर्तनीय है, इसलिए वह जीवन अनंत है; चूँकि केवल परमेश्वर ही जीवन का मार्ग है, इसलिए परमेश्वर स्वयं ही अनंत जीवन का मार्ग है। अत: सबसे पहले तुम्हें जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर कहाँ है, और अनंत जीवन के इस मार्ग को कैसे प्राप्त करना है। आओ, हम इन दोनों मामलों पर अलग-अलग संगति करें।

यदि तुम वास्तव में अनंत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, और यदि तुम इसको खोजने के लिए भूखे हो, तो पहले इस प्रश्न का उत्तर दो : आज परमेश्वर कहाँ है? हो सकता है कि तुम कहो, “परमेश्वर स्वर्ग में रहता है, बिल्कुल—वह तुम्हारे घर में तो रहेगा नहीं, है न?” हो सकता है कि तुम कहो कि परमेश्वर ज़ाहिर तौर पर हर चीज़ में बसता है। या तुम कह सकते हो कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में रहता है, या वह आत्मिक संसार में है। मैं इनमें से किसी से भी इन्कार नहीं करता हूँ, परन्तु मैं इस मामले को स्पष्ट करना चाहता हूँ। ऐसा कहना पूरी तरह से उचित नहीं है कि परमेश्वर मनुष्यों के हृदयों में रहता है, परन्तु यह पूरी तरह से गलत भी नहीं है। इसका कारण यह है कि परमेश्वर में विश्वासियों के मध्य, कुछ लोग ऐसे हैं जिनका विश्वास सत्य है और कुछ ऐसे हैं जिनका विश्वास गलत है, कुछ ऐसे हैं जिन्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त है और कुछ ऐसे हैं जिन्हें परमेश्वर अस्वीकार करता है। कुछ ऐसे हैं जो उसको प्रसन्न करते हैं कुछ ऐसे हैं जिनसे वो उससे घृणा करता है, और कुछ ऐसे हैं जिन्हें वह पूर्ण बनाता है और कुछ ऐसे हैं जिन्हें वह मिटा देता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि परमेश्वर कुछ ही लोगों के हृदयों में रहता है, और ये कुछ लोग निस्संदेह सच्चाई से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे जिन्हें परमेश्वर अनुमोदन प्रदान करता है, जिनसे वह प्रसन्न है और जिन्हें वह पूर्ण बनाता है। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के द्वारा अगुवाई प्राप्त करते हैं। चूँकि ये परमेश्वर के द्वारा अगुवाई प्राप्त करते हैं, इसलिए ये वे लोग हैं जिन्होंने पहले से ही परमेश्वर के अनंत जीवन के मार्ग के बारे में सुन लिया है और उस मार्ग को देख लिया है। जिनका परमेश्वर पर विश्वास गलत है, जो परमेश्वर के द्वारा स्वीकृत नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, जो परमेश्वर के द्वारा मिटा दिए जाते हैं—उनका परमेश्वर के द्वारा अस्वीकार किया जाना तय है, निश्चित है कि वे बिना जीवन के मार्ग के रहेंगे, और परमेश्वर कहाँ है इससे भी अनभिज्ञ रहेंगे। इसके विपरीत, जिनके हृदयों में परमेश्वर रहता है वे जानते हैं कि वह कहाँ है। ये ही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर ने अनंत जीवन का मार्ग प्रदान किया है, और ये ही परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। अब, क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर कहाँ है? परमेश्वर मनुष्यों के हृदय में भी है और मनुष्यों के साथ भी। वह न केवल आत्मिक संसार में है, और सभी चीज़ों के ऊपर है, बल्कि उससे ज़्यादा पृथ्वी पर उसका वास है जहां मनुष्य का अस्तित्व है। अत: अंत के दिनों के आगमन ने परमेश्वर के कार्य के चरणों को नये क्षेत्र में अग्रसर किया है। परमेश्वर ब्रह्माण्ड की सभी चीज़ों पर प्रभुता रखता है, और वह मनुष्यों के हृदयों में उनका मुख्य आधार है, और इसके अलावा, वह मनुष्यों के मध्य में रहता है। केवल इसी तरह से वह मानवजाति तक जीवन का मार्ग ला सकता है और मनुष्य को जीवन के मार्ग में लेकर आ सकता है। परमेश्वर धरती पर आकर मनुष्यों के बीच इसलिये रहता है ताकि मनुष्य जीवन का मार्ग प्राप्त कर सके और मनुष्य अस्तित्व में रहे। इसी के साथ-साथ, परमेश्वर ब्रह्माण्ड की सभी चीज़ों को आदेश देता है, ताकि वे मनुष्यों के मध्य में उसके प्रबंधकारणीय कार्य में सहयोग प्रदान करें। इसलिए, यदि तुम केवल इस सिद्धांत को मानते हो कि परमेश्वर स्वर्ग में है और मनुष्यों के हृदय में है, लेकिन मनुष्यों के मध्य परमेश्वर के अस्तित्व के सत्य को नहीं मानते, तो तुम कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते, न कभी सत्य का मार्ग प्राप्त करोगे।

परमेश्वर स्वयं ही जीवन है, सत्य है, और उसका जीवन और सत्य साथ-साथ अस्तित्व में रहते हैं। जो सत्य को प्राप्त करने में असफल रहते हैं वे कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते। बिना मार्गदर्शन, सहायता और सत्य के प्रावधान के तुम केवल शब्दों, सिद्धांतों और इन सबसे बढ़कर मृत्यु को ही प्राप्त करोगे। परमेश्वर का जीवन सतत विद्यमान है, और उसका सत्य और जीवन एक साथ अस्तित्व में रहते हैं। यदि तुम सत्य के स्रोत को नहीं खोज पाते, तो तुम जीवन के पोषण को प्राप्त नहीं कर पाओगे; यदि तुम जीवन के प्रावधान को प्राप्त नहीं कर सकते तो तुम्हारे पास निश्चय ही सत्य नहीं होगा, और इसलिए कल्पनाओं और धारणाओं के अलावा, तुम्हारे शरीर की संपूर्णता केवल देह ही होगी, तुम्हारी बदबूदार देह। जान लो कि किताबों की बातें जीवन नहीं मानी जाती हैं, इतिहास के लेखों को सत्य के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता, और अतीत के नियम, आज के समय में परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचनों का लेखा-जोखा नहीं माने जा सकते। केवल वही जो परमेश्वर ने पृथ्वी पर आकर और लोगों के बीच रहकर अभिव्यक्त किया है, सत्य, जीवन, परमेश्वर की इच्छा और उसका कार्य करने का वर्तमान तरीका है। यदि तुम अतीत के युगों में परमेश्वर के द्वारा कहे गए वचनों को आज के संदर्भ में लागू करते हो, तो तुम एक पुरातत्ववेत्ता हो, और तुम्हें सबसे बेहतर ढंग से चित्रित करने के लिए ऐतिहासिक विरासत का विशेषज्ञ कहा जा सकता है, क्योंकि तुम हमेशा उन कार्यों के निशानों पर विश्वास करते हो जो परमेश्वर ने अतीत में किए हैं, केवल परमेश्वर की उस छाया पर विश्वास करते हो जो अतीत में परमेश्वर के लोगों के बीच रह कर कार्य करने से बनी है। तुम केवल उसी मार्ग पर विश्वास करते हो जो परमेश्वर ने पुराने समय में अपने अनुयायियों को दिया था। तुम आज के समय में परमेश्वर के कार्य के मार्गदर्शन पर विश्वास नहीं करते, आज परमेश्वर के महिमामय मुखाकृति में विश्वास नहीं करते, और परमेश्वर के द्वारा आज के समय में व्यक्त किये गये सत्य के मार्ग पर विश्वास नहीं करते। अत: तुम निश्चित रूप से एक ऐसे दिवास्वप्न दर्शी हो जो वास्तविकता से कोसों दूर है। यदि तुम अभी भी उन वचनों से चिपके रहोगे जो मनुष्य को जीवन प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो तुम एक निर्जीव काष्ठ[क] के बेकार टुकड़े के समान हो, क्योंकि तुम बहुत ही रूढ़िवादी, असभ्य हो, विवेकबुद्धि का इस्तेमाल करने में अक्षम हो।

देहधारी परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह, जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर के सार को धारण किए है, और अपने कार्य में परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि को धारण करता है, और ये चीजें मनुष्य के लिये अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, फिर भी परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे सभी धोखेबाज़ हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर लोगों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। यह वह देह नहीं है जो किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, बल्कि वह देह है, जो परमेश्वर के कार्य को पृथ्वी पर अच्छी तरह से वहन कर सकता है और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करता है, और अच्छी प्रकार से परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकता है। देर-सवेर, मसीह का भेष धारण करने वालों का पतन होगा, क्योंकि वे भले ही मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें किंचितमात्र भी मसीह का सार नहीं होता। इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य के द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती है, परन्तु स्वयं परमेश्वर के द्वारा इसका उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है। इस प्रकार, यदि तुम वास्तव में जीवन का मार्ग खोजने के इच्छुक हो, तो पहले तुम्हें यह मानना होगा कि पृथ्वी पर आगमन करने के द्वारा ही वह मनुष्यों को जीवन प्रदान करता है, और अंत के दिनों में वह पृथ्वी पर मनुष्यों को जीवन का मार्ग प्रदान करने के लिए आता है। यह अतीत नहीं है; यह आज हो रहा है।

अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी एवं अनंत मार्ग प्रदान करता है। ये सत्य वो मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन को प्राप्त करेगा, और एकमात्र इसी मार्ग से मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह के द्वारा प्रदान किए गए जीवन के मार्ग को नहीं खोजते हो, तो तुम कभी भी यीशु के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पाओगे और कभी भी स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य नहीं बन पाओगे क्योंकि तुम इतिहास के कठपुतली और कैदी दोनों हो। जो लोग नियमों, शाब्दिक अर्थों के नियंत्रण में हैं और इतिहास की ज़ंजीरों में जकड़े हुए हैं वे कभी भी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और कभी भी सतत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने के योग्य नहीं बन सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन जल की अपेक्षा, उनके पास मैला पानी है जिससे हज़ारों सालों से लोग चिपके हुए हैं। जिनके पास जीवन का जल नहीं है वे हमेशा के लिए एक लाश, शैतान के खेलने की वस्तु और नरक की संतान बने रहेंगे। फिर वे परमेश्वर को कैसे देख सकते हैं? यदि तुम केवल अतीत को पकड़े रहने की कोशिश करोगे, केवल शांत ठहर कर चीज़ों को वैसा ही बनाए रखने की कोशिश में लगे रहोगे जैसी वे हैं, और यथास्थिति को बदलने और इतिहास को तिलांजलि देने की कोशिश नहीं करोगे, तो क्या तुम हमेशा परमेश्वर के विरोध में नहीं होगे? परमेश्वर के कार्य के चरण बहुत ही विशाल और सामर्थी हैं, जैसे कि हिलोरे मारती हुई लहरें और गरजता हुआ तूफान—फिर भी तुम निष्क्रियता से बैठकर विनाश का इंतजार करते हो, अपनी ही मूर्खता से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते। इस प्रकार से, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला कैसे माना जा सकता है? और तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में न्यायोचित कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के वचन तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुवाई कैसे कर सकते हैं? वे तुम्हें कैसे स्वर्ग लेकर जायेंगे? तुम्हारे हाथों में शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना ही दे सकते हैं, वह सत्य नहीं दे सकते जो जीवन देने में सक्षम हैं। जो शास्त्र तुम पढ़ते हो वे तुम्हारी जिह्वा को सम्पन्न बना सकते हैं लेकिन ये वे विवेकपूर्ण वचन नहीं हैं जो तुम्हें मानव जीवन का बोध करने में मदद कर सकते हैं, ये वो मार्ग तो बिल्कुल ही नहीं हैं जो तुम्हें पूर्णता की ओर ले जायें। क्या यह भिन्नता तुम्हें विचार-मंथन का कारण नहीं देती? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों को समझने नहीं देता है? क्या तुम अपने आप को परमेश्वर से मिलने के लिए स्वर्ग में ले जाने के लिए खुद ही योग्य हो? परमेश्वर के आये बिना, क्या तुम अपने आप को परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनन्द मनाने के लिए स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? मैं तुम्हें सुझाव देता हूँ, कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो, और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है, उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्यों को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य को नहीं प्राप्त कर सकते, न कभी जीवन प्राप्त कर सकते हो।

जो मसीह के द्वारा कहे गए सत्य पर भरोसा किए बिना जीवन प्राप्त करने की अभिलाषा करते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे हास्यास्पद लोग हैं और जो मसीह के द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कल्पना में ही खोए हुए हैं। इसलिए मैं यह कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं वे हमेशा के लिए परमेश्वर के द्वारा घृणित समझे जाएंगे। अंत के दिनों में मसीह मनुष्यों के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का प्रवेशद्वार है, उससे होकर गए बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता। मसीह के माध्यम बिना कोई भी परमेश्वर के द्वारा पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास है, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना ही चाहिए और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन के प्रावधान को स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम सिर्फ़ अनुग्रह प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वे सभी जो सच्चाई से उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें जीवन प्रदान किया जाए। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है और यही वह मार्ग है जिसे नए युग में प्रवेश करने वालों को अपनाना चाहिए। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और उसकी भर्त्सना करते हो, निंदा करते हो और यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम अनंत समय तक जलाए जाते रहने के लिए निर्धारित हो और तुम कभी भी परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। क्योंकि यह मसीह ही स्वयं पवित्र आत्मा और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना कार्य सौंपा है। इसलिए मैं कहता हूँ कि अंत के दिनों के मसीह के द्वारा जो भी कार्य किया गया है यदि उसे तुम स्वीकार नहीं करते हो तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। जो प्रतिकार पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को सहना होगा वह सभी के लिए स्वत:-स्पष्ट है। मैं यह भी कहता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का विरोध करोगे और उसे ठुकराओगे, तो ऐसा कोई भी नहीं है जो तुम्हारे लिए इसका नतीजा भुगत लेगा। इसके अलावा, आज के बाद से फिर कभी तुम्हें परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम खुद की गलती पर प्रायश्चित करने की कोशिश भी करते हो, तो भी तुम कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देख पाओगे। क्योंकि तुम जिसका विरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, जिसको ठुकरा रहे हो वह क्षुद्र प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम इसके परिणामों के बारे में जानते हो? तुमने कोई छोटी-मोटी गलती नहीं बल्कि एक बहुत ही जघन्य अपराध किया होगा। इसलिए मैं प्रत्येक को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने ज़हरीले दाँत मत दिखाओ, या लापरवाही से आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुमको जीवन दिला सकता है और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें नया जन्म पाने या फिर से परमेश्वर का चेहरा देखने की अनुमति नहीं दे सकता है।

स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया

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